मैं क्यूं दार्शनिक हुआ जा रहा हूँ?
आज दार्शनिकता त्यांगने को जी करता है ...
आज नदी किनारे खड़े धाराओं को बहते देखने का नहीं, उनमें घुल जाने को जी करता है...
आज आते हुए तूफ़ान को बाहें खोल महसूस करने को जी करता है...
आज गिरती बारिश से बचने का नहीं, उसमे भीग जाने को जी करता है...
आज किसी नए अजनबी से नहीं, किसी पुराने दोस्त से मिलने को जी करता है...
आज विपदा से डरने का नहीं, डर को डराने का जी करता है...
आज दार्शनिकता त्यांगने को जी करता है ...
तरुण चंदेल
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